गुरुवार, 23 जुलाई 2009
राजनीति को स्वच्छ छविवालों की दरकार
युवा कांग्रेस ने स्वच्छ छवि वालों को ही पार्टी में स्थान देने की बात कही है। यह एक सकारात्मक कदम है। यदि ऐसा होता है तो यह राजनीति के लिए अच्छा होगा। आज किसी भी पढे लिखे व्यक्ति से पूछेगे कि राजनीति कैसी है तो वह तपाक से उत्तर देगा कि यह अच्छों का खेल नहीं है। यह अच्छों के लिए नहीं है। वैसे राजनीति बुरी नहीं होती है।राजनीति करने वाले बुरे होते हैं। राजनीति अर्थात राज करने की नीति, जनता पर शासन करने की नीति, यदि यह जनता की भलाई के लिए की जाती है तो उत्तम, परंतु यही राजनीति जब केवल अपने हितों को साधने, अपनी स्वार्थ सिद्धि करने, वर्ग विशेष को लाभांन्वित करने के लिए की जाती है तो यह राजनीति न होकर लाभनीति में परिवर्तित हो जाती है।
अब प्रश्न यह उठता है कि यदि स्वच्छ छवि वालों को मौका दिया जाएगा तो क्या स्वच्छ छवि वाले मौका लेना चाहेंगे। अभी आम चुनाव हुए, इसी से जुडा पिछले दिनों एक सर्वेक्षण समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ। इस बार करोडपति सांसदों की संख्या सर्वाधिक है। अर्थात करोडपति उम्मीदवार के चुनाव जीतने की संभावनाए बढ़ जाती है। धनाढ्य होना और श्रेष्ठ चरित्र रखना विरोधाभास है। हमारा अनुभव इस बारे में अच्छा नही है। स्वच्छ छवि वाले पूर्व चुनाव आयुक्त शेषन, शिवखेड़ा, मुंबई के चुनावों में खडी एक कारपोरेट जगत की हस्ती का क्या हस्र हुआ यह सब जानते है। फिर भी संसार आशा पर चल रहा है।
प्रश्न यह है कैसे लोग स्वच्छ छवि वाले होते हैं, क्या वे जो धनी है परंतु जिनके खिलाफ कोई मामले लंबित नहीं है या वे जो केवल पढे-लिखे है, सुलझे है, जिनके खिलाफ कोई मामला विचाराधीन नहीं है अथवा वे जो गरीब है और जिनका चरित्र अच्छा है। राजनीति के लिए धन चाहिए, व्यक्ति को साधन सम्पन्न होना चाहिए। जो धनवान है राजनीति में आते ही उसे और धनवान होने के अवसर दिखाई देते है, वह और सबल होना चाहता है, जो गरीब है वह धनवान होने के लिए राजनीति में आना चाहता है। राजनीति एक सेवा है और सेवा स्वार्थ से नहीं हो सकती है। कम से कम आज की राजनीति तो सेवा नहीं है क्योंकि एक बार जो व्यक्ति राजनीति के माध्यम से कोई पद प्राप्त कर लेता है तो वह उसे मृत्यु तक छोड़ना नहीं चाहता, उस पर बना रहना चाहता है। अगर किसी कारण से छोडना ही पडे तो अपनी विरासत वह अपने परिवार को दे जाता है।
अच्छा तो यह होता है यदि सभी दल ऐसे लोगों को आगे ले आते जो संयमी हों, जिनका आचरण श्रेष्ठ हो, जो विवेक के सहारे निर्णय लेते हो, जिनका चिंतन व्यापक हो, जिनका चित्त उदात्त हो, जिनमें अपने से बड़ों के प्रति आदर हो, छोटो के प्रति स्नेह हो, गरीबों के प्रति करूणा हो और दुष्टों के प्रति अरूचि हो, जो स्वार्थ से अधिक परमार्थ को महत्व देते हो, जिनमें दंभ न हो, जो विनयी हो, जो दूसरों का दुख समझे, जिन्हें यथार्थ बोध हो, जिन्हें यथार्थ प्रिय हो, अथार्थ जो सचमुच चरित्रवान हो, प्रतिभावान हो, केवल ऐसे लोग जब सब दलों में आएंगे तो सबका चिंतन समान होगा और धीरे धीरे मलिन छवि के लोगों से राजनीति दूर होती जाएगी और राजनीति में स्वच्छ छवि वालों का प्रवेश और अंतत राजनीति भी स्वच्छ हो जाएगी और राजनीति स्वच्छ होने पर अच्छे लोग स्वाभावत: राजनीति में आएंगे।
जरूरत है इस संबंध में किसी भी दल के पहल करने की, उस पर अमल करने की, अपनी कथनी और करनी एक करने की। इस तरह के किसी भी विचार का सदैव स्वागत है।
विनोद राय
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Aapki baat se sahmat hoon.
जवाब देंहटाएंtwice i read your post . really it is ipressive and thoughtful . the need of the day is not the question who comes to the politics ; rich or poor but men of character . it is right that those rich are corrupt in many cases but not in all most all cases. as u write poor in politics want to be richer . now it comes to individual character . so character building of the nation is required and that can be done by proper education not by any initiative in politics . i see the so called initiative of congress is only the stunt . first congress should oust those who r corrupt in the party n there are many . the last paragraph is more realistic n effective
जवाब देंहटाएंnow see buta singh is so corrupt . he is in congress . what Rahul can do ?plz. send a note to Congress Leadership / Rahul to clean him out n put him in jail with his son . CONGRES PARTY IS ALSO MAKING STUNTS N NOTHING else .
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