कल सरकार ने महंगाई के आंकड़े जारी किए। मुद्रास्फीति की दर कम हो गई है। महंगाई नकारात्मक हो गई है। बड़ा अच्छा लगा। सोचा, शासन अच्छा चल रहा है। शासक का बाजार पर नियंत्रण है। व्यवस्था दुरूस्त है। सुशासन की कल्पना साकार हो रही है। यह आम आदमी के लिए अच्छा है। आम आदमी महंगाई की मार से बचा हुआ है। आज सुबह बाजार गया। सब्जी खरीदने। कल से दूने भाव पर सब्जी बिक रही थी। सब्जी के दाम मैंने दो बार पूछे। परंतु दुकानदार ने वही दाम बताए। मैंने सोचा कैसी विचित्र स्थिति है। सरकार कुछ कहती है, प्रचारित कुछ किया जाता है, होता कुछ और ही है, पाया कुछ और जाता है। वेतनभोगी होने पर जब मेरी यह स्थिति है तो दूसरों का क्या होता होगा जो दैनिक मजूदरी करके अपनी जीविका चलाते हैं। क्या हमारे जनप्रतिनिधि यह नहीं जानते। किसी ने उत्तर दिया - हमारे जनप्रतिनिधि देश की बड़ी समस्याओं पर चिंतन करते हैं अत: उन्हें इन छोटी बातों का ध्यान नहीं रहता है। हां, वोट पड़ने के एक महीने पहले तक वे इन छोटी बातों का विशेष ध्यान रखते है जिससे कि मतदाता इतना कमजोर न हो जाए कि मतदान केंद्र तक ही न जा सके।
विनोद राय
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