जब से मैंने होश संभाला तथा स्कूल में पहली ही क्लास से टीचर ने सबसे पहले सच बोलने की शिक्षा दी। तब से अब तक सच बोलने, सच देखने, सच खोजने, सच का सामना करने की सीख कदम-कदम पर दी जाती रही है। परंतु "सच का सामना" नामक सीरियल के आते ही एक बवाल खड़ा हो गया। कोई भी "सच का सामना" करने को तैयार नहीं है। इसके विरोध में भिन्न भिन्न प्रकार के तर्क दिए जा रहे है। इन तर्कों में भी कुछ सच हो सकता है। हो सकता है पूछे गए प्रश्न मर्यादित न हो परंतु सारे प्रश्न तो ऐसे नहीं हो सकते है तथा इससे कार्यक्रम की प्रासंगिकता तो कम नहीं हो जाती है। परंतु सच का सामना करने से लोग घबराते क्यों है। शायद इसलिए कि हम झूठ में जीते हैं, सत्य तो बस उपदेश, विशेष रूप से पर उपदेश के लिए होता है। इस कार्यक्रम में बड़े लोगों को बुलाया जाता है जिन्हें अपने जीवन का सच सबको बताना होता है। इसी सच को उद्घाटित करने से वे लोग डर रहे है। डर तो हम इसलिए रहे है कि हम जितने बड़े है उतने ही बड़े झूठे भी है। अन्यथा विरोध के स्वर बड़े ही लोगों की तरफ से क्यूं उठते। हमारे देश में तो बड़ों तथा छोटों के सच अलग-अलग है। छोटे लोग तो सच का सामना करने को तैयार है क्योंकि वे तो सच्चे है परंतु उन्हें पग-2 पर झूठ का सामना करना पड़ता है। परंतु बड़े लोग इससे डर रहे है। डरने का कारण यह नहीं है कि उनका सच सामने जाएगा। उनके सच को जो सारा भारतवर्ष जानता है, पहचानता है। परंतु कहता नहीं है। उन्हें डर है कि अपनी जुबानी अपने सच को स्वीकार करने में उनकी अपूरणीय क्षति/ हानि हो सकती है। वैसे अच्छा होता कि बड़े लोग स्वयं इस कार्यक्रम में आते और अपने सच द्वारा जनता के बीच जो उनके प्रति भ्रम है, दुराव, दुराग्रह है, उसे ठीक करते, इससे जनता में एक सकारात्मक संदेश जाएगा, लोगों का बड़ों पर विश्वास बढ़ेगा, लोग उन पर भरोसा कर सकेंगे। अत: बड़े लोगों को चाहिए कि वे स्वत: इस कार्यक्रम का हिस्सा बनें और अपनी कथनी और करनी को आम जनता के बीच साबित करें। आखिर जीवनभर जनता को सच की सीख देने वाले हमारे बड़े लोगों को अपना सच साबित करने का इससे अच्छा मौका कब और कहां मिलेगा।
विनोद राय
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umda aalekh
जवाब देंहटाएंachha laga
badhaai !
इस ब्वॉग के माध्यम से सामयिक विषयों पर आपके समय-समय पर लेख पढ़ने को मिलते हैं जो आपकी जागरूकता, संवेदनशीलता व विचारशीलता के परिचायक होते हैं। सच का सामना लेख पढ़ कर अच्छा लगा कि आप सच और पारदर्शिता के पक्ष में खड़े हैं, मगर कार्यक्रम सच का सामना के संदर्भ में कुछ अन्य पहलुओ पर भी विचार करने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
जवाब देंहटाएंi do not like to comment on the validity of program but so far those who came to say truth were nothing but faceless persons who have committed wrongs and now shameless enough to make these wrong doings public . i don't think it the truth that u first commit the theft and then say in public that u r a thief and u r true. shame to them .
जवाब देंहटाएंi want to say that poligraphy and narko test cant be taken as proof in courts.reports says that people who are addicted e.g. alchohal,or other psycotraphic substances can easily face poligraphy or narcko test. so the realiability of this prg is in suspense.it is only publicity stunt.
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