गुरुवार, 9 जुलाई 2009

हिंदी का बढ़ता दायरा

हिंदी पूरे देश में सर्वाधिक लोगों द्वारा जानी जाने वाली भाषा है। स्‍वतंत्रता आंदोलन से लेकर स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति तक हिंदी ने पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधे रखा। जहां भारतेंदु हरिशचन्‍द्र ने निज भाषा उन्‍नति अहै सब उन्‍नति को मूल कहकर भाषा के माध्‍यम से सब उन्‍नति की कल्‍पना की हे। महात्‍मा गांधी, विनोबा भावे, सुभाष चन्‍द्र बोस, बंकित चन्‍द्र चटर्जी आदि जैसे देशभक्‍तों ने हिंदी के महत्‍व को रेखांकित किया है। स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति के पश्‍चात की जनसंचार माध्‍यम, रेडियो, दूरदर्शन, समाचार-पत्रों, फिल्‍मों के माध्‍यम से राजभाषा हिंदी का प्रचार-प्रसार हुआ है। परिणामस्‍वरूप दूरदर्शन द्वारा दिखाए गए रामायण, महाभारत, हम लोग, कौन बनेगा करोड़पति जैसे धारावाहिकों के माध्‍यम से हिंदी भारत के कोने-कोने में फैल गई। इन कार्यक्रमों के माध्‍यम से न केवल अन्‍य भाषाभाषियों में हिंदी सीखने की इच्‍छा उत्‍पन्‍न हुई बल्‍कि भारतीय संस्‍कृति का भी प्रसार हुआ। मेरा जूता है जापानी गाना पूरे देश में ही नहीं विदेशों में भी लोकप्रिय है। उत्‍तर भारत से हिंदी में प्रकाशित दैनिक जागरण की पाठकों की संख्‍या देश में सर्वाधिक है। हिंदी का प्रसार बढ़ रहा है परंतु नियमों के सहारे नहीं अपितु अपने स्‍वयं के आधार पर। इसका उदाहरण है हमारे चैनल्‍स। जिनते भी चैनल अंग्रेजी में थे उनको अपना हिंदी चैनल भी चालू करना पड़ा। कारण हिंदी के दर्शकों की संख्या सर्वाधिक है। इसी तरह से जो भी पत्रिकाएं अंग्रेजी में निकलती थी वे भी अब हिंदी में प्रकाशित हो रही है चाहे वह इंडिया टुडे हो अथवा फेमिना।

हिंदी को अपनाने में असमर्थ लोग तरह-2 के बहाने बनाते है यथा शब्‍दों की कमी की बात कहते हैं परंतु हिंदी भाषा के प्रसार व हिंदी पाठकों की संख्‍या में निरंतर वृद्धि होने के कारण इकनामिक टाइम्‍स और बिजनेस स्‍टैण्‍डर्ड जैसे अंग्रेजी के अखबार भी आज हिंदी में प्रकाशित हो रहे है तथा इनके पाठकों की संख्‍या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। कहने का मंतव्‍य यह है कि हिंदी हर क्षेत्र में मजबूती से अपने पांव पसार रही है। हिंदी सक्षम है तभी तो आगे बढ़ रही है, स्‍वीकारी जा रही है। आज से कुछ वर्ष पहले हमारे वरिष्‍ठ नौकरशाह चिंतक, विचारक, वैज्ञानिक, डॉक्‍टरों को केवल अंग्रेजी में बोलते सुना जा सकता था परंतु आज परिस्‍थिति बदल गई है। इन सभी को आप धाराप्रवाह हिंदी बोलते सुन सकते है। राजनीतिक दल भी हिंदी को महत्‍व दे रहे है। कारण सबसे बड़ा भाषाभाषी समूह हिंदी का है। हिंदीतर नेता भी हिंदी सीख रहे हैं। कारण पूरे देश में लोकप्रिय, स्‍वीकार्य होने के लिए हिंदी ज्ञान अनिवार्य है। पूरे देश में हिंदी की स्‍थिति अगर तमिलनाडु को छोड़ दे तो बड़ी सुखद है। पूर्वोत्‍तर के राज्‍यों में तो हिंदी ज्ञान अचंभित कर देने वाला है। इसी तरह से कर्नाटक , आंध्रप्रदेश, केरल में भी लोग हिंदी अपना रहे है। कारण साफ है आज का व्‍यक्‍ति रोजगार की तलाश में भारत के किसी भी भू-भाग में जाने को तैयार है। मुंबर्इ, दिल्‍ली जैसे महानगरों में रोजगार के जितने अवसर उपलब्‍ध है उतना अन्‍य प्रांतों, महानगरों में नहीं।

अत: भारत का जागरूक नागरिक अपने को अपनी भाषा संस्‍कृति में बांध के नहीं रखा है। वह दूसरी भाषा, सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली जानेवाली भाषा को सीखने को तत्‍पर है। हिंदी जानना आज की आवश्‍यकता है, जरूरत है, समय की मांग है। अत: सभी भारतवासी हिंदी की ओर उन्‍मुख हुए है। हिंदी का विरोध किसी भी भाषा से नहीं है चाहे वह अंग्रेजी ही क्‍यों न हो। विदेशों में रहने वाले भारतीय अपने बच्‍चों को हिंदी सीखाना चाहते है। वे चाहते है कि अन्‍य भाषा की जानकारी के साथ उन्‍हें व उनके बच्‍चों को अपनी भाषा का ज्ञान होना जरूरी है। बिना अपनी भाषा ज्ञान के अपनी जड़ों को नहीं जाना जा सकता है। अत: आज हिंदी का दायरा बढ़ रहा है, हिंदी के पाठक बढ़ रहे हैं, हिंदी प्रेमी बढ़ रहे है, हिंदी सीखने, हिंदी को सराहने वाले बढ़ रहे है। अत: वह दिन दूर नहीं जब पूरा भारत हिंदीमय होगा।


विनोद राय

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी पोस्ट पढ़कर बहुत ख़ुशी हुयी !
    आशा है आगे भी आप ऐसी ही पठनीय रचनाएं लिखते रहेंगे !

    पुनः आऊंगा !

    हार्दिक शुभ कामनाएं !

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  2. बहुत अच्छा पोस्ट। हिंदी आजादी के आंदोलन के समय में ही नहीं, उससे पहले भी सैकड़ों सालों से देश की एकता बनाए हुए है। जरा इन तथ्यों पर विचार कीजिए-
    - अमीर खुसरो, जो हिंदी के प्रथम कवि माने जाते हैं, ने फारसी के साथ-साथ हिंदी (खड़ी बोली) में भी रचनाएं कीं।
    -तुलसीदास ने रामचरितमानस संस्कृत में न रचकर अवधी में रचा।
    -उनके समकालीन कबीर ने भी हिंदी को ही अपनाया।
    - इनके अलावा, हिंदी के बाहर के प्रदेशों के संतों ने भी हिंदी में खूब रचानाएं कीं, जैसे नानक, रैदास, नर्मद, नामदेव आदि।
    - आर्य समाज के संस्थापक, दयानंद सरस्वति, जो गुजरती थे, और हिंदी जानते नहीं थे, फिर भी उन्होंने अपना सत्यार्थप्रकाश वाला ग्रंथ संस्कृत या गुजराती में न लिखकर जैसी हिंदी उन्हें आती थी, उसमें रची।

    यह सब इसलिए क्योंकि ये सब महापुरुष जानते थे कि भारत की जनता को जोड़नेवाली कड़ी हिंदी है।

    भले ही आजकल के अंग्रेजीदां लोग इस बात को न समझते हों, जनता खूब समझती है। जब किसी मलयाली को पंजाबी से बात करनी हो, या बंगाली को तमिल से बात करनी हो, तो वे हिंदी का ही सहारा लेते हैं।

    हिंदी व्यवसाय की भी भाषा चिरकाल से रही है। सच तो यह है कि हिंदी को देश के कोने-कोने में फैलाने में दिल्ली के अग्रवालों और राजस्थान के मारवाड़ियों जैसे व्यवसायी कौमों का बड़ा हाथ रहा है।

    हिंदी को लोग उत्तर भारत की भाषा समझते हैं। वह वह है, पर यह भी सही है कि उसका खड़ी बोली वाला आधुनिक रूप पहले-पहले दक्षिण में प्रकट हुआ, और दक्खनी कहलाई।

    आपने सही कहा, हिंदी का किसी से विरोध नहीं है। वह लोगों को जोड़नेवाली महान भाषा है।

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