यह सच है कि जिन्ना ही मुस्लिमों के लिए अलग राष्ट्र बनाने के हिमायती थे क्योंकि उन्होंने हिंदु और मुसलमान को दो अलग-अलग कौम माना। यह भी सच है कि उन्हीं के कारण भारत का विभाजन हुआ और दोनों समुदायों को बंटवारे की त्रासदी झेलनी पड़ी। लाखों लोग बेघर हुए। हजारों माताओं के सिंदूर पुछ गए। लाखों बच्चे अनाथ हो गए। लाखों लोग विकास की दौड़ में पिछड़ गए। शारीरिक और मानसिक यातना का तो कहना ही क्या। जब यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो चुका है कि जिन्ना मुसलमानों के हिमायती थे और उन्होंने अपनी सोच को अमली जामा भी पहना दिया तो फिर उनके बारे में पुस्तक लिखने से क्या फायदा। पुस्तक में जिन्ना की तारीफ से क्या होगा। क्या भुगते हुए कष्टों में कमी आ जाएगी अथवा भारतीय जनता जिन्ना को माफ कर देगी। असल में भाजपा मुद्दों की तलाशमें भटक रही है। भाजपा जिन मुद्दों पर कभी सत्ता में आई थी उनमें से एक भी पूरा करने में नाकामयाब रही। भाजपा को अहसास हो गया कि बिना मुस्लिम समर्थन के वे पुन: सत्ता सुख नहीं प्राप्त कर सकते है। भारत के मुसलमानों को तो भाजपा अपना नहीं बना सकी तो अब दूसरे देश और विशेष रूप से हमारे पड़ौसी देश के व्यक्ति को महिमामंडित करके भारतीय जनता पार्टी के लोग मुस्लिमों के बीच अपनी पार्टी की उदार छवि प्रस्तुत करने के लिए बेचैन दिख रहे है। इसके पीछे इनका ध्येय जो भी हो पर इतना तो तय है कि पार्टी मुस्लिमों में अपनी पैठ बनाने के लिए व्याकुल है और जिन्ना की प्रशंसा भी उसी दिशा में उठाया गया दूसरा कदम है। इसके पहले आडवाणी जी ने भी अपना असफल प्रयास किया था। लेखक से यह भी पूछा जा सकता है कि मरहूम जिन्ना की गुणगाथा से भारत को क्या लाभ मिलेगा। क्या भारत में ऐसे मुस्लिम नेताओं की कमी है जिन पर लिखने की जरूरत नहीं है या जिनके बारे में बहुसंख्यक समुदाय को और जानकारी दी जानी चाहिए। ऐसे देशभक्त मुस्लिमों के बारे में बताने की जरूरत है जिससे देश में अमन-चैन बढ़े, शांति का प्रसार हो, आपसी सद्भावना बढ़े। भाजपा को चाहिए कि यदि वह सचमुच चाहती है कि मुसलमान उसका समर्थन करें, उसके साथ चले, उसका साथ दे तो देश के अंदर रह रहे मुसलमानों को वह ध्यान दें। उन्हें अपना बनाने की कोशिश करें, उनकी प्रगति में भागीदार बने तभी मुसलमान उसकी तरफ मुखातिब होगा अन्यथा वह उससे उदासीन बना रहेगा।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन्ना अब हमारे नहीं है, वे पराये है। वे धर्मनिरपेक्ष थे अथवा पंथसापेक्ष इससे बहुत कुछ हल नहीं होने वाला है। फिर उनके बारे में लिखने से क्या फायदा। किसी को लिखना ही है तो अपने बारे में, अपने अपनेां के बारे में लिखें। अपनों के बारे में दी गई जानकारी लाभप्रद भी हो सकती है। मेरा तो अपना यही मत है कि जिन्ना एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति नहीं थे। उनके व्यक्तित्व से जुड़ने का यह परिणाम है कि जो भी उनके समीपस्थ होना चाहता है या जो भी उनका यशगान करता है उसी की हानि हो जाती है। उसे ही पराभव मिलता है, अपयश प्राप्त होता है जो उनके व्यक्तित्व नकारात्मक गुणों को ही उद्घाघित करता है। ऐसे में हमारे विद्वान राजनेताओं विशेषकर भाजपा से जुड़े राजनेताओं को चाहिए कि वे जिन्ना मोह छोड़कर भारत की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एकता पर अपनी कलम चलाए जिससे भारत में रहने वाले सभी वर्गों का भला हो सके, सभी की प्रगति हो और पूरा देश खुशहाल हों। फिर उनके बारे में लिखने से क्या फायदा।विनोद राय
क्या आपने यह लेख लिखने से पहले जसवंत सिंह की वह पुस्तक पढ़ी जिसमें यह विवाद है या केवस मीडिया की सुर्खियों के आधार पर ही आपने अपने निष्कर्ष निकाले हैं। आपका स्वयं का यह मत कि जिन्ना धर्मनिरपेक्ष नहीं थे किन्हीं तथ्यों पर आधारित है या केवल भावनाओं पर ? यदि आपका मत तथ्यों द्वारा पुष्ट नहीं है तो इसे एक लेखक की अपरिपक्वता ही कहा जाएगा। प्रकारांतर से आप अपने लेख में इतिहास के अन्वेषण पर भी प्रशनचिह्न लगा रहे हैं। आपके तर्क के हिसाब से तो इतिहास के किसी भी मुद्दे पर नवीन शोध या अन्वेषण का कोई लाभ नहीं है।
जवाब देंहटाएंmr. singh is free to write ,what he thinks a fact of history on the basis of his study and understanding . one may like/ read or may not . lured to be a writer he has paid the price . BJP is a political party and mr. singh was a member and the party /and it's intrest is above any member . both the actions are accordingly and thus right . ''Jinna was secular ''says Adwani , but Mr.Adwani is also right that he/Jinna could not establish Secularism in Pakistan , As in India Secularism has deep roots . but again you r right to say that the book is of no use to India or History. it is a labour lost .
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