सोमवार, 17 अगस्त 2009

कमीने

मैंने अभी अभी टीवी सेट आन किया है मुख्‍य समााचारों का जिक्र करते हुए उददघोषिका कहती है आज से कमीने मुंबई के सिनेमाघरों में । मैं सकते में आ गया। मैंने सोचाा कि इस तरह के उटपटांग नाम रखकर फिल्‍म निदेशक समाज को क्‍या संदेश देना चाहते हैं। क्‍या वे सस्‍ती लोकप्रियता हासिल करना चाहते हैं इस तरह के नाम रखके या एक खास तबके को सिनेमाघरों तक खींचना चाहते हैं। लेकि यह सब क्‍येां। केवल पैसा कमाने के लिए, केवल अपने लाभ के लिए, केवल अपना हित साधने के लिए, और यह सब भी देश के उस युवा वर्ग की कीमत पर जो हमारा वर्तमान हैं, जो ऊर्जावान हैं, जो कुछ भी करने कराने पर आमादा हैं, जो किसी भी कीमत पर कुछ भी कर गुजरने को तैयार है। इतनी बडी जमात के प्रति ऐसा व्‍यवहार। क्‍या धनार्जन ही हमारा परम लक्ष्‍य है। देश समाज के प्रति कोई जवाब देही अथवा उत्‍तरदायित्‍व नहीं। युवावस्‍था जिसमें भावनाएं अपने किनारों को तोडने के लिए सदैव तत्‍पर रहती है, जिसमें कोई भी भाव स्‍थाई नहीं होता है, जिसमें अपने प्रेय को प्राप्‍त करने लिए उचित अनुचित साधन के इस्‍तेमाल का ध्‍यान नहीं होता है। उस वर्ग के साथ ऐसा खिलवाड़, बाजारवाद का इतना निरंकुश दुरूपयोग, स्‍वार्थवरता की पराकाष्ठा, उत्‍तरदायित्‍व हीनता का ऐसा प्रतिमान, संस्‍कारहीनता का ऐसा प्रदर्शन, ऐसा प्रयोग जो मूल को ही नष्‍ट करने पर आमादा हो। आप समाज के श्रेष्‍ठ सदस्‍य हैं, संसाधनों से परिपूर्ण हैं तो अपने संसाधनों का उपयोग लोगों के चारित्रिक पतन के लिए करेंगे। लाभ के बदले हानि पहुचाएगे। आपका देश के नौजवानों के प्रति कोई उत्‍तरदायित्‍व नहीं है। युवावस्‍था में मन बिलकुल तरल रहता है, आगे बढने के रास्‍ते ढूढता है। किसी भी मार्ग से आगे बढना चाहता है उसे इस तरह का प्रलोभन, खुला निमंत्रण, वह भी राम व कृष्‍ण, कबीर व तुलसी के देश में। अक्षम्‍य अपराध। युवा वर्ग संचित बल है। ऊर्जा का अक्षय स्रोत्र है । इसका हमारा समाज किस तरह उपयोग करना चाहता है, इसकी जिम्‍मेदारी हम पर है। मैं फिल्‍म सेंसर बोर्ड से अनुरोध करता हॅूं कि वे इस तरह के नाम वाली फिल्‍मों पर पाबंदी लगाएं। एक तो वैसे ही अच्‍छे नाम वाली फिल्‍में भी वे सब कुछ दिखा रही हैं जो समाज व देश तथा हमारे नौजवानों के लिए अच्‍छा नहीं है ऐसे में कमीने नाम ही मन में एक उन्‍माद पैदा कर रही है। नकारात्‍मक ऊर्जा का संचार कर रही है। ऐसे में सब यदि कमीने होने लगे तो हमारे चारित्रिक अनुशासन और उन आदर्शों का क्‍या होगा जिसके बल पर हमारा देश खड़ा है और जो हमारी अंतरनिहित मजबूती है। जरा सोचें, जरा मनन करें।

विनोद राय

1 टिप्पणी: