आज सुबह जब मैं समाचार पत्र पढ रहा था तभी मेरी दृष्टि एक चित्र पर गई। चित्र पर गई दृष्टि चित्रित हो गई। वह ढीठ होकर रूक गई और आगे बढ़ने से मना कर दी। चित्र एक छोटे बच्चे का था। करीब एक वर्ष के आसपास उसकी उम्र होगी। वह एक महिला व एक पुरुष के बीच में स्थित था। वह बच्चा था। वह कोमल दीख रहा था। पूरा शरीर उसका रूई की तरह था। उसे पाने की इच्छा हो रही थी। उसे अपने पास बैठाने की इच्छा हो रही थी। उसके साथ रहने की इच्छा हो रही थी, उसके साथ खेलने की इच्छा हो रही थी। वह प्रसन्न दीख रहा था, उसके मुख पर आभा थी, विभा थी, निश्छलता थी। वह सत्य था, दीप्त था, आलोकित था, प्रकाशित था। वह पूर्ण था। मुग्ध करने वाला था। वह मुझे प्रसन्नता दे रहा था। उसे देखकर मुझे सुख मिल रहा था, मन को चैन आ रहा था, शांति मिल रही थी। मैं उस पर मोहित था। मुझे ध्यान आया कि उसे आखिर हम बच्चा कहते क्यो है। बहुत सोचने पर मन ने कहा कि बच्चा तो इसलिए कहते है क्योंकि वह बचा है। बचा है लोभ से, मोह से, क्रोध से, लालच से, छल से, कपट से, ईर्ष्या व द्वेष से, झूठ और फरेब से इसीलिए तो वह बच्चा है।
विनोद राय
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बहुत भाव प्रवण लेख है। दरअसल आपके अन्दर का कवि इसमें से झाँक रहा है। क्षमा करें, इस लेख के भाव को मैंने अपनी एक ग़ज़ल के शेर के लिए चुरा लिया है। अभी ग़ज़ल मुकम्मल नहीं है, इसलिए यहाँ नहीं लिख रहा।
जवाब देंहटाएंwaah
जवाब देंहटाएंkamaal ka anubhav hua baanch kar..........