सत का संग, सज्जनों का संग को सत्संग कहते है। कहते है कि सन्मार्ग पर चलने के लिए सत्संग जरूरी है। व्यक्ति जैसे जैसे बड़ा होता है वह जीवन बिताने के लिए अपना मार्ग /तरीका चुनता है। जीवन जीने के तरीके विभिन्न हो सकते हैं पर सब का लक्ष्य सुखमय जीवन बिताना है परंतु क्या सुमार्ग पर चले बिना यह संभव होगा। क्या बबूल का वृक्ष रोप कर आप उससे आम के फल प्राप्त करने की इच्छा कर सकते है। ठीक उसी तरह बिना सत्संग के आप सफल जीवन नही जी सकते है। रामचरित मानस में इसकी महिमा का कुछ इस तरह से वर्णन किया गया है।
'बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई'गोस्वामी जी कहते है कि अच्छे बुरे का विवेक ही सत्संग से आता है परंतु इसके लिए प्रभु की कृपा होनी जरूरी है। अब प्रभु की कृपा कैसे प्राप्त होगी उसके लिए व्यक्ति को क्या करना होगा। प्रभु की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे पहला गुण व्यक्ति को विनयी होना चाहिए, शीलवान होना चाहिए
क्योंकि तुलसीदास जी ने कहा कि प्रभु को 'मोहि कपट छल छिद्र न भावा' । ऐसे लोग नापसंद हैं जो कपटी हैं, छलिया है, दूसरों का दोष निकालते हैं ऐसे व्यक्ति प्रभु के कृपा पात्र नहीं हैं। फिर कैसे लोग प्रभु की कृपा का सुख प्राप्त कर सकते है तुलसीदास जी कहते है
'अस विवेक जब देई विद्याता, तबतजि दोष गुनहि मनुराता'
ईश्वर केवल सुपात्रो पर अपनी कृपा बरसाते है उनकी कृपा से ही विवेक जागृत होता है तभी मनुष्य अवगुणों को छोडकर गुणों की तरफ आकृष्ट होता है। गुणों से उसे लगााव हो जाता है।गुण ही उसे अच्छे लगने लगते हैं। गुणी ही उसके प्रिय हो जाते है। परंतु ऐसा तभी हो सकता है जब आप मन से, कर्म से, वचन से सत्यार्थी होंगे। सत्य के प्रति आपकी रूचि होने पर ही आप सत्संग की तरफ प्रवृत्त होगें। जिसका जीवन सत्संग से युक्त है वही सुखी है, वही सफल है, वही सहिष्णु है, वही सरल है। अत: सत्संग करें जीवन की बाधाएं, अभाव आप कम हो जाएंगे और आप समभाव से जीवन यापन कर सकेंगे।
विनोद राय
very good . now u have come to right path . thanks
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