सोमवार, 3 अगस्त 2009

ग़ज़ल

बदल देते वो अपने हमसफर हर बार चुटकी में
बदल जाती है ज्यों इस मुल्क की सरकार चुटकी में

जवानी हो रवानी हो दिलों में जब हमारे तो
बजे धड़कन में भी पाजेब की झन्कार चुटकी में

मुहब्बत से किसे है वास्ता इस दौर में सचमुच
ज़माने में है अब तो जिस्म की दरकार चुटकी में

कभी दे कर तो देखो गीतकारों को निज़ामत भी
ख़तम हो जाएगी दो मुल्कों की तकरार चुटकी में

परिन्दों को ख़बर क्या नफ़रतों की सीमा रेखा का
कभी इस पार चुटकी में कभी उस पार चुटकी में

किसी फ़न का प्रदर्शन होता था बरसों की मेहनत से
बने हैं अब किसी भी क़िस्म के फनकार चुटकी में

है मुश्किल है ख़ुदा की बन्दगी में ख़ुद को पा लेना
मगर कहते हैं अब तो ख़ुद को ही अवतार चुटकी में

है इक अरसा लगा मुझको ग़ज़ल का फ़न समझने में
नमन करता हूँ उनको जो कहें अशआर चुटकी में

2 टिप्‍पणियां:

  1. gazab kar diya ...
    kamaal ki ghazal.........

    कभी दे कर तो देखो गीतकारों को निज़ामत भी
    ख़तम हो जाएगी दो मुल्कों की तकरार चुटकी में
    परिन्दों को ख़बर क्या नफ़रतों की सीमा रेखा का
    कभी इस पार चुटकी में कभी उस पार चुटकी में
    _____________BAHUT KUCHH KAH DIYA
    ________NAHIN, SAB KUCHH KAH DIYA
    ______________badhaai !

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  2. अलबेला जी, सचमुच आपकी टिप्पणी भी अलबेली है। आपकी हौसला अफ़ज़ाई के लिए मैं आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।

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