रविवार, 7 फ़रवरी 2010
राहुल गांधी का मुंबई दौरा
पिछ्ले दिनों राहुल गांधी ने मुंबई का दौरा किया।वे शिवसेना व मनसे के विरोध के वावजूद मुंबई आए ।बडा अच्छा लगा ।मनसे और शिवसेना मुह ताकते रह गई। राहुल का जहां जी चाहा वहां गये।मुंबई की सड्को पर बेखौफ हो कर घूमें ।एक ब्यक्ति के लिए पूरी फौज की व्यवस्था की गई थी। पर क्या इसके बाद वहां रह रहे उत्तरभारतीय अपने आप को सुरक्षित महसूस करेंगे ।वे भी पहले की तरह स्वच्छंदता से जीवन यापन कर पाने मे सफल होंगे ।एक बात तो तय है कि यदि सरकार चाहे तो क्या नही कर सकती है।मुंबई में सबको पता है कि कौन लोग उत्तरभारतीयों के पीछे है।पिछ्ले एक वर्ष से मनसे और शिवसेना का उत्पीड्न जारी है ।पर सरकार ने अपने कान बंद रखे ।मीडिया ने भी इनके विषवमन को खूब दिखाया ।परंतु सत्तापक्ष को उस समय इसकी जरूरत थी।चुनाव हो गये।काम बन गया।सत्ता फिर मिल गई ।पर इसका दुष्परिणाम यह निकला कि अपने फायदे के लिए सत्ता पक्ष ने जिसका दुरूपयोग किया वही अब मराठी लोगों के बीच एक मजबूत ताकत के रूप में उभर आया ।मजबूत होना किसे अच्छा नही लगता है ।उसने अपनी मजबूती का उपयोग सत्तापक्ष के ही खिलाफ प्रयोग करने की चेष्टा की ।सरकार की साख दाँव पर लग गई ।सरकार की किरकिरी होने से बच गई।परंतु प्रश्न यह है कि जब तक स्थिति नियंत्रण से बाहर नही हो जाती है तब तक सरकार कोई ठोस कदम क्योंनही उठाती है।कानून और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकार की होती है । अगर समय से इन ताकतो पर कारवाई कर दी जाय तो समाज और देश के लिए एक बडा खतरा बनने से पहले ही समाप्त हो जाता है और जरूरत भी इसी बात की है अन्यथा देश के एक छोटे से प्रांत मे घटित हो रही घटनाओ की प्रतिक्रिया यदि किसी बडे प्रांत अथवा बडे भाषा भाषी वर्ग से होता है तो स्थिति नियंत्रण से परे हो जायगी ।
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