पिछ्ले एक ह्फ्ते से मौसम कुछ बदला बदला सा नजर आ रहा है। बाजारों में चहल पहल बढ गई है। युवक युवतियां वेलेंटाइन डे मनाने की तैयारी करने की योजनाएं बना रहें है। उनके चेहरो पर एक अजीब सी उत्सुकता देखी जा सकती है। युवक-युवतियां चुस्त दुरूस्त नजर आ रही है। युवक युवतियों का समूह अलग अलग बैठकर अपनी रणनीति बना रहा है। पिछ्ले एक दशक से वेलेंटाइन डे मनाने का चलन भारत में बढा है। आखिर वेलेंटाइन डे है क्या ?क्या करते है इस दिन युवक एवं युवतियां? युवक एवं युवतियां इस दिन एक दूसरे के प्रति प्रेम का इजहार करतें है तथा एक दूसरे को भेट इत्यादि देते लेते है। तो क्या पिछले एक दशक से ही युवक युवतियां एक दूसरे के प्रति प्रेम प्रदर्शित कर रहे है इसके पहले नही? ऐसा नही है।आदि काल से प्रेम किया जा रहा है,यह अलग बात है कि युवा लुक छिप कर प्रेम करते थे।वेलेंटाइन डे पर अब युवा मुक्त प्रेम प्रदर्शित करते है ।वे दुनियां को बताना चाहते हैं कि वे प्रेमी है।पर क्या प्रेम सृष्टि का उदगम नहीं है । प्रेम ही तो सृष्टि का कारक है। प्रेम पर ही तो सृष्टि टिकी हुई है। प्रेम है तो सृष्टि है। आज के समाज में प्रेम का अभाव है। इंसान इंसान से प्रेम नहीं करता है बल्कि घृणा करता है, घृणा से वैमनस्य बढ़ता है तथा समाज खंडित होता है, समाज का विघटन होता है जो विकास के लिए बाधक है। इसके विपरीत प्रेम दूरी कम करता है, नजदीकिया बढ़ाता है, प्रेम कल्याण चाहता है, प्रेम विकास चाहता है, प्रेम से शांति बढ़ती है, सुख मिलता है, सामाजिक सदभाव बना रहता है। क्या हम घर में, स्कूलों में अपने बच्चों को एक दूसरे से प्रेम करने का पाठ नहीं पढ़ाते हं। क्या हम यह नहीं जानते हैं कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में शांति तभी रह सकती है जब समाज में प्रेम रहेगा। तो फिर वेलेंटाइन डे का विरोध क्यों ? प्रेमी तो अपने आप में मस्त रहते हैं, वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते है। उनका किसी से विरोध नहीं होता है। वे तो बस अपने प्रेम को पाना चाहते हैं, अपने प्रेम की सुरक्षा चाहते है। प्रेम एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह है, इसे मत रोके। अगर रोकना है तो नफरत को रोके, वैमनस्य को रोके जो समाज को बांटता है। प्रेम को बढ़ने दे, इसे मुक्त बहने दें, इसे सबमें समा जाने दें जिससे सब एक हो जाए, सब एक दूसरे के हो जाए।
विनोद राय