मंगलवार, 17 नवंबर 2009

मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है हिन्दी का प्रयोग

विज्ञान पत्रिका करेंट साइंस में एक अनुसंधान का विवरण प्रकाशित हुआ है, जिसके बारे में हिन्दी दैनिक राष्ट्रीय सहारा में भी एक समाचार प्रकाशित हुआ है। राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केन्द्र द्वारा किए गए इस अनुसंधान का निष्कर्ष यह है कि अंग्रेज़ी की तुलना में हिन्दी भाषा के प्रयोग से मस्तिष्क अधिक चुस्त दुरुस्त रहता है।

अनुसंधान से संबन्धित मस्तिष्क विशेषज्ञों का कहना है कि अंग्रेज़ी बोलते समय दिमाग का सिर्फ बायाँ हिस्सा सक्रिय रहता है, जबकि हीन्दी बोलते समय मस्तिष्क का दायाँ और बायाँ, दोनों हिस्से सक्रिय हो जाते हैं जिससे दिमाग़ी स्वास्थ्य तरोताज़ा रहता है। राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केन्द्र की भविष्य में अन्य भारतीय भाषाओं के प्रभाव पर भी अध्ययन करने की योजना है।

अनुसंधान से जुड़ी डॉ. नंदिनी सिंह के अनुसार, मस्तिष्क पर अंग्रेज़ी और हिन्दी भाषा के प्रभाव का असर जानने के लिए छात्रों के एक समूह को लेकर अनुसंधान किया गया। अध्ययन के पहले चरण में छात्रों से अंग्रेज़ी में जोर-जोर से बोलने को कहा गया और फिर हिन्दी में बात करने को कहा गया। इस समूची प्रक्रिया में दिमाग़ की हरकतों पर एमआरआई के ज़रिए नज़र रखी गई। परीक्षण से पता चला  कि अंग्रेज़ी बोलते समय छात्रों के दिमाग का सिर्फ बायाँ हिस्सा सक्रिय था, जबकि हिन्दी बोलते समय दिमाग के दोनों हिस्से (बायाँ और दायाँ) सक्रिय हो उठे।

अनुसंधान दल के मुताबिक, ऐसा इसलि होता है क्योंकि ग्रेज़ी एक लाइन में सीधी पढ़ी जाने वाली भाषा है, जबकि हिन्दी शब्दों के ऊपर-नीचे और बाएँ-दाएँ लगी मात्राओं के कारण दिमाग को इसे पढ़ने में अधिक कसरत करनी पड़ती है, जिससे इसका दायाँ हिस्सा भी सक्रिय हो उठता है। इस अनुसंधान के परिणामों पर जाने माने मनोचिकित्सक डॉ. समीर पारेख ने कहा कि ऐसा संभव है। उनका कहना है कि हिंदी की जिस तरह की वर्णमाला है, उससे मस्तिष्क को कई फायदे हैं।

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