बुधवार, 25 नवंबर 2009

26 नवंबर 2009

आज से ठीक एक साल पहले आज ही के दिन पूरे देश ने आतंकवादियों के कुकृत्‍यों का सबसे घिनोना खेल देखा था। मुंबई में हुए आतंकवादी हमले में करीब 200 लोग मारे गए और 600 लोग घायल हुए। इन हमलों ने  पूरे देश को झकझोर के रख दिया था। कितने परिवार आज भी इस दिन का याद नहीं करना चाहते हैं क्‍योंकि इन हमलों ने किसी की मांग का सिंदूर, किसी मां का बेटा, किसी पिता का सहारा, किसी बहन का भाई, किसी परिवार का सहारा, तो कोई किसी का प्‍यारा छीन लिया था। आज उस घटना को घटित हुए पूरा एक साल हो गए है, यह दिन आत्‍मचिंतन का विषय है कि इस दौरान हमने और हमारी सरकार ने इन घटनाओं को रोकने तथा इन घटनाओं से पीड़ित लोगों के लिए क्‍या किया। यह सच है कि इस घटना के दौरान सारा देश एकता के सूत्र में बंध गया था हर भारतवासी ने आतंकवाद से लड़ने की कसमें खाई थी, हमारे बुद्धिजीवी, साहित्‍यकार, रंगमंच से जुड़े कलाकार, उद्योग से जुड़े उद्योगपति के अलावा देश के हर व्‍यक्‍ति ने  आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाई थी। कुछ ने जुलूस निकालकर, तो कुछ ने मोमबत्‍तियां जलाकर तो कुछ ने बैनर पोस्‍टरों के माध्‍यम से  तो कुछ ने सभाए आयोजित करके, तो कुछ ने गोष्‍ठियां आयोजित करके आम जनता और सरकार को आतंकवाद से निपटने के लिए अपना पूरा सहयोग एवं समर्थन दिया था। पर वास्‍तविकता क्‍या है एक आतंकवादी जिसे जिंदा पकड़ लिया गया था उसे आज भी सलाखों के पीछे रखा गया है तथा फास्‍ट्रेक कोर्ट में मुकदमा चलाने के बावजूद भी उसे सजा नहीं मिल पाई है।  इस हमले में मुंबई पुलिस के कुछ आला अफसर भी शहीद हुए थे उनके परिवारों को भी यथोचित सरकारी सहायता एवं समर्थन नहीं मिला है क्‍योंकि इन परिवारों के लोग सरकार की नाकामी के बारे में सार्वजनिक बयान दे रहे हैं। यह सच है कि जो भुक्‍तभोगी होता है उसे ही पीड़ा का वास्‍तविक एहसास होता है। ऐसे में क्‍या सरकार इन शहीदों के परिजनों के देखभाल के लिए संवेदनशील नहीं है। यह बहुत ही दुख का विषय है। इसके अतिरिक्‍त यह पूर्णत: प्रमाणित होने पर कि आतंकवादी हमला पड़ौसी देश द्वारा प्रायोजित था तथा हमलावर भी पाकिस्‍तानी थे हमारी सरकार, आज तक एक भी इस षडयंत्रकारी को गिरफ्तार कराने में सफल नहीं हो सकी है। इसके लिए उसे अमेरिकी प्रशासन का भी सहारा लेना पड़ रहा है। परंतु अभी तक परिणाम निश्‍फल ही रहे हैं। ऐसे में केवल शीर्षस्‍थ लोगों द्वारा पीड़ितों के प्रति संवेदना प्रकट करना, श्रृंद्धाजलि सभाओं में जाकर शहीदों को श्रृंद्धाजलि दे देना तथा बार-बार यह आश्‍वासन देना कि षडयंत्रकारियों को जब तक दंड नहीं दिला लेंगे तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, आमजन के गले नहीं उतरता है ऐसे में आवश्‍यकता है कि हमारी सुरक्षा  व्‍यवस्‍था और खुफिया तंत्र इतना मजबूत और दृढ हो कि भविष्‍य में इस तरह की घटनाएं पुन घटित न हों तथा आतंकवादी ताना-बाना तार-तार हो जाए। साथ ही, अपना सर्वोच्‍च बलिदान देने वालों के परिजनों की पूरी देखभाल सुनिश्‍चित हो तथा जनता में आतंकवाद से लड़ने का एक जनजागरण अभियान चलाना चाहिए क्‍योंकि यह संभव नहीं है कि सरकार हर समय हर व्‍यक्‍ति को हर स्‍थान पर सुरक्षा मुहैया करा सकती है। ऐसे में जब तक सरकार इससे निपटने के लिए अपनी जिम्‍मेदारी का निर्वहन खुद गंभीरता से  नहीं करती है तब तक आम व्‍यक्‍ति से जिम्‍मेदारी निभाने की उम्मीद रखना उचित नहीं होगा।
इस घटना में मारे गए सभी शहीदों के प्रति मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।


विनोद राय  

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है हिन्दी का प्रयोग

विज्ञान पत्रिका करेंट साइंस में एक अनुसंधान का विवरण प्रकाशित हुआ है, जिसके बारे में हिन्दी दैनिक राष्ट्रीय सहारा में भी एक समाचार प्रकाशित हुआ है। राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केन्द्र द्वारा किए गए इस अनुसंधान का निष्कर्ष यह है कि अंग्रेज़ी की तुलना में हिन्दी भाषा के प्रयोग से मस्तिष्क अधिक चुस्त दुरुस्त रहता है।

अनुसंधान से संबन्धित मस्तिष्क विशेषज्ञों का कहना है कि अंग्रेज़ी बोलते समय दिमाग का सिर्फ बायाँ हिस्सा सक्रिय रहता है, जबकि हीन्दी बोलते समय मस्तिष्क का दायाँ और बायाँ, दोनों हिस्से सक्रिय हो जाते हैं जिससे दिमाग़ी स्वास्थ्य तरोताज़ा रहता है। राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केन्द्र की भविष्य में अन्य भारतीय भाषाओं के प्रभाव पर भी अध्ययन करने की योजना है।

अनुसंधान से जुड़ी डॉ. नंदिनी सिंह के अनुसार, मस्तिष्क पर अंग्रेज़ी और हिन्दी भाषा के प्रभाव का असर जानने के लिए छात्रों के एक समूह को लेकर अनुसंधान किया गया। अध्ययन के पहले चरण में छात्रों से अंग्रेज़ी में जोर-जोर से बोलने को कहा गया और फिर हिन्दी में बात करने को कहा गया। इस समूची प्रक्रिया में दिमाग़ की हरकतों पर एमआरआई के ज़रिए नज़र रखी गई। परीक्षण से पता चला  कि अंग्रेज़ी बोलते समय छात्रों के दिमाग का सिर्फ बायाँ हिस्सा सक्रिय था, जबकि हिन्दी बोलते समय दिमाग के दोनों हिस्से (बायाँ और दायाँ) सक्रिय हो उठे।

अनुसंधान दल के मुताबिक, ऐसा इसलि होता है क्योंकि ग्रेज़ी एक लाइन में सीधी पढ़ी जाने वाली भाषा है, जबकि हिन्दी शब्दों के ऊपर-नीचे और बाएँ-दाएँ लगी मात्राओं के कारण दिमाग को इसे पढ़ने में अधिक कसरत करनी पड़ती है, जिससे इसका दायाँ हिस्सा भी सक्रिय हो उठता है। इस अनुसंधान के परिणामों पर जाने माने मनोचिकित्सक डॉ. समीर पारेख ने कहा कि ऐसा संभव है। उनका कहना है कि हिंदी की जिस तरह की वर्णमाला है, उससे मस्तिष्क को कई फायदे हैं।

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

भारतीय मानसिकता


मै काफी दिनो से यह सोच रहा था कि जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है, वस्‍तुओं के दाम आम जनता की पहुंच से बाहर हो रहे है, जनता अपनी बुनियादी जरूरतों को भी पूरा करने में असहाय महसूस कर रही है। उसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ सकता है। इसके लिए उचित अवसर भी आ रहा था। यह अवसर था तीन राज्‍यों में विधानसभा चुनाव का। वोट पड़ गए। मतगणना का दिन आ गया। मैंने सोचा कि आज सरकार को अपनी नाकामयाबी की कीमत चुकानी पड़ेगी परंतु यह क्‍या। जैसे-जैसे मतगणना आगे बढ़ रही थी वैसे-वैसे मैं अपने चिंतन पर शर्मिंदा था। शाम होते-होते तीनों राज्‍यों में सत्‍ता पक्ष सतारूढ़ होने के पुन:  करीब था। मेरा मन उद्वेलित हो उठा कि आम जनता को यही अवसर था जब वह सरकार को उसके महंगाई रोकने की असफलता का मजा चखा सकती थी परंतु परिणाम ठीक इसके विपरीत आया। चिंतन फिर चैतन्‍य हुआ और मन इन परिणामों के मद्देनजर भारतीय जनमानस के चिंतन के मूल में जा पहुंचा। अंत में मैं यही निष्‍कर्ष निकाल पाने में कामयाब रहा कि भारतवासी सचमुच एक शांतप्रिय जनमानस है जिनसे महंगाई सही जा सकती है, वह अधिक मूल्‍य पर सामान खरीद कर अपना जीवनयापन कर सकता है, अपने  खाने में कटौती करके महंगाई की मार सह सकता है परंतु उसके लिए आतंकवाद और सम्‍प्रदायवाद बर्दास्‍त नहीं है। इन परिणामों के पीछे यही एक चीज मुखरित होकर सबके समक्ष आती है कि अगर देश में अमन चैन है, साम्‍प्रदायिक सदभाव है, दंगे-फसाद  नहीं है, आम इंसान शांति की जिंदगी जी पा रहा है। उसका जीवन सुरक्षित है तो वह महंगाई को सह सकता है। महंगाई उसके लिए छोटी बुराई है। इन चुनावों ने पूरे देश के समक्ष एक बार फिर से भारतीय जनमानस की धर्म निरपेक्षता और शांतप्रियता को सबके समक्ष रखा है। अत: सरकार को अब महंगाई रोकने का भरपूर प्रयास करना चाहिए।


विनोद राय