आज से ठीक एक साल पहले आज ही के दिन पूरे देश ने आतंकवादियों के कुकृत्यों का सबसे घिनोना खेल देखा था। मुंबई में हुए आतंकवादी हमले में करीब 200 लोग मारे गए और 600 लोग घायल हुए। इन हमलों ने पूरे देश को झकझोर के रख दिया था। कितने परिवार आज भी इस दिन का याद नहीं करना चाहते हैं क्योंकि इन हमलों ने किसी की मांग का सिंदूर, किसी मां का बेटा, किसी पिता का सहारा, किसी बहन का भाई, किसी परिवार का सहारा, तो कोई किसी का प्यारा छीन लिया था। आज उस घटना को घटित हुए पूरा एक साल हो गए है, यह दिन आत्मचिंतन का विषय है कि इस दौरान हमने और हमारी सरकार ने इन घटनाओं को रोकने तथा इन घटनाओं से पीड़ित लोगों के लिए क्या किया। यह सच है कि इस घटना के दौरान सारा देश एकता के सूत्र में बंध गया था हर भारतवासी ने आतंकवाद से लड़ने की कसमें खाई थी, हमारे बुद्धिजीवी, साहित्यकार, रंगमंच से जुड़े कलाकार, उद्योग से जुड़े उद्योगपति के अलावा देश के हर व्यक्ति ने आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाई थी। कुछ ने जुलूस निकालकर, तो कुछ ने मोमबत्तियां जलाकर तो कुछ ने बैनर पोस्टरों के माध्यम से तो कुछ ने सभाए आयोजित करके, तो कुछ ने गोष्ठियां आयोजित करके आम जनता और सरकार को आतंकवाद से निपटने के लिए अपना पूरा सहयोग एवं समर्थन दिया था। पर वास्तविकता क्या है एक आतंकवादी जिसे जिंदा पकड़ लिया गया था उसे आज भी सलाखों के पीछे रखा गया है तथा फास्ट्रेक कोर्ट में मुकदमा चलाने के बावजूद भी उसे सजा नहीं मिल पाई है। इस हमले में मुंबई पुलिस के कुछ आला अफसर भी शहीद हुए थे उनके परिवारों को भी यथोचित सरकारी सहायता एवं समर्थन नहीं मिला है क्योंकि इन परिवारों के लोग सरकार की नाकामी के बारे में सार्वजनिक बयान दे रहे हैं। यह सच है कि जो भुक्तभोगी होता है उसे ही पीड़ा का वास्तविक एहसास होता है। ऐसे में क्या सरकार इन शहीदों के परिजनों के देखभाल के लिए संवेदनशील नहीं है। यह बहुत ही दुख का विषय है। इसके अतिरिक्त यह पूर्णत: प्रमाणित होने पर कि आतंकवादी हमला पड़ौसी देश द्वारा प्रायोजित था तथा हमलावर भी पाकिस्तानी थे हमारी सरकार, आज तक एक भी इस षडयंत्रकारी को गिरफ्तार कराने में सफल नहीं हो सकी है। इसके लिए उसे अमेरिकी प्रशासन का भी सहारा लेना पड़ रहा है। परंतु अभी तक परिणाम निश्फल ही रहे हैं। ऐसे में केवल शीर्षस्थ लोगों द्वारा पीड़ितों के प्रति संवेदना प्रकट करना, श्रृंद्धाजलि सभाओं में जाकर शहीदों को श्रृंद्धाजलि दे देना तथा बार-बार यह आश्वासन देना कि षडयंत्रकारियों को जब तक दंड नहीं दिला लेंगे तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, आमजन के गले नहीं उतरता है ऐसे में आवश्यकता है कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था और खुफिया तंत्र इतना मजबूत और दृढ हो कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं पुन घटित न हों तथा आतंकवादी ताना-बाना तार-तार हो जाए। साथ ही, अपना सर्वोच्च बलिदान देने वालों के परिजनों की पूरी देखभाल सुनिश्चित हो तथा जनता में आतंकवाद से लड़ने का एक जनजागरण अभियान चलाना चाहिए क्योंकि यह संभव नहीं है कि सरकार हर समय हर व्यक्ति को हर स्थान पर सुरक्षा मुहैया करा सकती है। ऐसे में जब तक सरकार इससे निपटने के लिए अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन खुद गंभीरता से नहीं करती है तब तक आम व्यक्ति से जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद रखना उचित नहीं होगा।
इस घटना में मारे गए सभी शहीदों के प्रति मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
विनोद राय