सोमवार, 5 अक्टूबर 2009

ग़ज़ल

वो सर प्रेमियों के कटा कर चले
पुजारी अहिंसा के क्या कर चले


सफल है वही राजनीती में भी
मुखौटा जो मुख पे चढ़ा कर चले


चुनावों के दंगल में जीते वही
है सिक्का जो खोटा चला कर चले


ग़रीबों का दिल जीत कर हर कोई
इशारों पे अपने नचा कर चले


भगीरथ तो लाया था गंगा यहाँ
धरा हम मगर ये तपा कर चले


वो बूढ़ा नहीं दिल से बच्चा ही है
कपट से जो ख़ुद को बचा कर चले


तसव्वुर में तारी ख़ुदा ही तो था
जो रूठे सनम को मना कर चले


मुहब्बत ज़रा सी जहाँ पर मिली
वहीं दिल की बस्ती बसा कर चले


था मुश्किल जिसे करना हासिल उसे
निगाहों-निगाहों में पा कर चले


जवाबों ने जब-जब सुलाया मुझे
सवालों के काँटे जगा कर चले


कबीरा तू संग अपने ले चल हमें
कि अपना ही घर हम जला कर चले

4 टिप्‍पणियां:

  1. था मुश्किल जिसे करना हासिल उसे
    निगाहों-निगाहों में पा कर चले

    wah

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  2. बेहद भावपुर्ण अभिव्यक्ति .....अच्छी लगी!

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  3. gam e dunia, gam e hasti or gam e jana ka anokha amalgam.
    utkrist ghazal.

    satya prakash

    www.abhisaptswapn.blogspot.com

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  4. सत्य जी, ओम आर्य जी एवं आमीन जी,
    आप सभी की भावपूर्ण टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार।
    -भूपेन्द्र

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