वो सर प्रेमियों के कटा कर चले
पुजारी अहिंसा के क्या कर चले
सफल है वही राजनीती में भी
मुखौटा जो मुख पे चढ़ा कर चले
चुनावों के दंगल में जीते वही
है सिक्का जो खोटा चला कर चले
ग़रीबों का दिल जीत कर हर कोई
इशारों पे अपने नचा कर चले
भगीरथ तो लाया था गंगा यहाँ
धरा हम मगर ये तपा कर चले
वो बूढ़ा नहीं दिल से बच्चा ही है
कपट से जो ख़ुद को बचा कर चले
तसव्वुर में तारी ख़ुदा ही तो था
जो रूठे सनम को मना कर चले
मुहब्बत ज़रा सी जहाँ पर मिली
वहीं दिल की बस्ती बसा कर चले
था मुश्किल जिसे करना हासिल उसे
निगाहों-निगाहों में पा कर चले
जवाबों ने जब-जब सुलाया मुझे
सवालों के काँटे जगा कर चले
कबीरा तू संग अपने ले चल हमें
कि अपना ही घर हम जला कर चले
था मुश्किल जिसे करना हासिल उसे
जवाब देंहटाएंनिगाहों-निगाहों में पा कर चले
wah
बेहद भावपुर्ण अभिव्यक्ति .....अच्छी लगी!
जवाब देंहटाएंgam e dunia, gam e hasti or gam e jana ka anokha amalgam.
जवाब देंहटाएंutkrist ghazal.
satya prakash
www.abhisaptswapn.blogspot.com
सत्य जी, ओम आर्य जी एवं आमीन जी,
जवाब देंहटाएंआप सभी की भावपूर्ण टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार।
-भूपेन्द्र