सितंबर का महीना आ गया है। वर्षा ऋतु अपने अंतिम चरण में है। मौसम में नमी आ गई है। यह नमी हमारे मन और मस्तिष्क को भी भा रही है। मन को अच्छा लग रहा है। मन उदात्त हो रहा है। मन कुछ करने को चाह रहा है। मन आगे बढ़कर कुछ करना चाहता है। मन प्रचंड गर्मी की ताप से तप्त था। इसकी वजह से कुछ भी रूच नहीं रहा था। जब खुद का मन ठीन न हो तो व्यक्ति दूसरों को क्या सहयोग देगा। पर सितंबर माह के आगमन से ही परिवर्तन की बयार बहना शुरू हो जाती है। मन को भी अच्छा लगने लगता है। वर्षा ऋतु से नहाई प्रकृति नवीन दिख रही है, पौधों के पत्ते स्वच्छ हो गए है। पौधे पुष्पित हो गए है। वे वातावरण में अपनी महक बिखरने के लिए आतुर प्रतीत होते है। पक्षी भी डाल-डाल, एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष बड़ी तत्परता से उड़ान भर रहे है। उनकी आवाजें वायुमंडल में मधुरता फैला रही है। सुबह-शाम हवा में हल्की ठंड घुली हुई महसूस होने लगी है। सुबह सुहावना होने लगा है। भोर में उठने की अब इच्छा नहीं होती है। सुबह होने तक निद्रा की देवी का साथ देने की इच्छा होती है। पार्कों, मैदानों में पड़ी ओस के कण नयनों को सुखद लगते हैं तथा मन में त्याग की भावना जगाते हैं क्योंकि जो त्यागता है वही मोती की भांति चमकता है। दिन में सूर्य की गर्मी मध्यम होने लगी है। दिन में सूर्यदेव का साथ मन को अरूचिकर नहीं लग रहा है। दिन में भी बाहर रहने की इच्छा हो रही है। गर्मी का प्रभाव कम होते ही बाहर की वस्तुएं भी अच्छी लगने लगी है। उनके प्रति एक लगाव पैदा हो रहा है। वे हमें आमंत्रित करती प्रतीत होती है। इसी तरह सायंकाल में उमस से राहत मिली है। पसीने का साथ छूट गया है। थकान से निजात मिली है। शाम की सुगंध महसूस की जा सकती है। पूरे वातावरण में फूलों की गंध व्याप्त है। यह गंध हमें घर वापस नहीं जाने देना चाहती है। रातभर विचरण की इच्छा हो रही है। गर्मी की कमी से बाहर के व्यक्ति व वस्तुएं भी तामसिक की जगह सात्विक दिखाई दे रही है। सत्य प्रतीत हो रही है, सत्य प्रतीत होने से सुंदर दिख रही है। कल्याणमयी हो गई है। उनकी सुंदरता मेरे मन को लुभा रही है। मुझे निमंत्रित कर रही है। मुझे अपना बना रही है। उम्मीद है कि प्रकृति का यह ऋतु परिवर्तन आपमें भी ऐसे मनोभाव उत्पन्न कर रहा होगा। आइए मिलजुलकर इस परिवर्तन का स्वागत करें। आह्लादित हो। इस परिवर्तन में खुद को भी परिवर्तित कर दें।
विनोद राय
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Description of nature is PRAISEWORTHY.
जवाब देंहटाएंR.N.MISHRA