सन 1992 में बाबरी मस्जित के गिराए जाने के पश्चात इसकी जांच के लिए बैठाए गए अायोग ने 17 वर्षो के बाद अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंप दी । पिछले दो दिनों से संसद में इसमें चर्चा हो रही है। चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष व विपक्ष ने एक दूसरे के उपर आरोप एवं प्रत्यारोप लगााने में कोई कसर नहीं छोड रखी है। भजपा जहां बाबरी विध्वंस को अचाानक हुआ बताकर अपने को बचााना चाहती दिखी वहीं पर समाजवादी पार्टी ने काग्रेस को बराबर का गुनहगार ठहराया कारण उस समय केंद्र में काग्रेस की सरकार थी। उनका आरोप था कि केंद्र सरकार भाजपा के रवैये केा जानते हुए भी समय रहते हुए आवश्यक कदम नहीं उठाए । इसी कारण से बाबरी मस्जित टूट गयी और देश का सामप्रदायिक माहौल खराब हो गया। मुलायम सिंह जी ने उस घटना की याद दिलाई जब उन्होने मस्जित बचाने के लिए कार्य सेवको पर गोली चलवा दी थी और इस घअना में कई कार्सेवक मारे गए थे। कम्यूनिस्ट पार्टी ने भी जहां भजपा को एक तरफ दोषी ठहराया तो वही दूसरी तरफ तत्कालीन केंद्र सरकार पर भी निशाना साधा । इस बहस का अंत गृह मंत्री द्वारा सरकार की तरफ से जवाब देकर समाप्त हुआ। मैं गृहमंत्री का भाषण सुन रहा था और सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनो पक्षों के वक्ताओं को सुनकर यही लग रहा था कि कोई भी पक्ष इस मुददे को अपने लाभ के लिए उपयोग करने में कमतर नहीं था । गृहमंत्री जी जब बाबरी मस्जित के विघ्वंस का सिलसिलेवार विवरण सुनाओ रहे थे तो मुझे ऐसा महसूस हूआ कि जैसे बाबरी मस्जिद आज पुन तौडी जा रही हो। सच कहू तो गृहमंत्री ने जिस अच्छे ढग से पूरी घअना का विवरएा संसद के समक्ष रखा उससे समप्रदाय विशेष के मन में एक दूसरी सम्प्रदाय के प्रति सोया हुआ विद्वेष पुन जागने का काम कर सकता है। बाबरी मस्जित टूटने के पश्चाात ही हमारे देश में आंतकवादी घटनाओं की बाढ आ गई । मंदिर सड़कों बाजारों रेलों दफ्तरों सार्वजनिक स्थलों और कहा नहीं आंतकवादी घअनाएं घटित हुई इसमें हजारों की संख्या में निदोर्ष लोागों की जाने गई तथा सम्प्रदाय विशेष को इस कार्य से जोड कर देखा जाने लगा। पिछले एक वर्षों से देश में आंतकवादी घटनाएं घटित नहीं हो रही हैं या हो भी रही हैं तो उनकी संख्या नगण्य है। ऐसे में सत्ता पक्ष और विपक्ष द्वारा सम्प्रदाय विशेष को अपनी तरफ करने के लिए संसद में किए जा रहे शब्दों का प्रयोग, दिए गए बयान आने वाले दिनों में पुन आंतकवादी घटनाओं को निमंत्रित करेंगे जिसमें एक बार पुन सैकड़ों बेगुनाह लोग मारे जाएगे। मैं इस लेख के माध्यम से अनुरोध करता हॅू कि इस तरह के संवेदनशील मुददो पर बहस करते समय भाषा संयत होनी चाहिए जिससे नकारात्मक सोच के लोग इन अवसरों का लाभ न उठा सकें।
विनोद राय