शुक्रवार, 26 जून 2009

ग़ज़ल

नाम उसका हुआ नहीं होता
गर वो गिर कर उठा नहीं होता


फैसला वर्षों बाद आए तो
न्याय वो न्याय नहीं होता

दुश्मनी उनसे मोल ले ली पर
ख़त्म ये सिलसिला नहीं होता

अक्स सच्चा दिखा न पाता तो
आइना, आइना नहीं होता

शायरी ऐसा ख़्वाब है जिसमें
कोई छोटा बड़ा नहीं होता

होती मेरी ग़ज़ल मुकम्मल गर
बेतख़ल्लुस लिखा नहीं होता

मंगलवार, 23 जून 2009

राजभाषा हिन्दी

इस समय गर्मी अपनी चरमअवस्था पर है। सूर्य के ताप से इस समय सारी भारत भूमि तप्त है, परन्तु हम सब इस ताप को केवल इस आशा से सहते हैं कि आने वाले दिन पावस के हैं। जब गर्मी का अन्त हो जाएगा और सम्पूर्ण धरती हरी-भरी हो जाएगी और हमें ताप से राहत मिलेगी। ठीक यही स्थिति राजभाषा हिन्दी की है। अंग्रेजी का प्रताप जहाँ हर ओर फैला हुआ है वहीं राजभाषा हिन्दी सुषुप्तावस्था में पूरे देश में विद्यमान है। जैसे दुख के बाद सुख आता है उसी प्रकार से एक दिन हिन्दी लौटेगी। हिन्दी के साथ भारतीय संस्कार लौटेंगे, भारतीय भाषाएँ लौटेंगी। "हिंदी पत्रिकाओं का प्रकाशन" राजभाषा हिन्दी के लौटने की आहट देता है। जरूरत है सभी को इस आहट को सुनने और समझने की और इसे पहचानने की। हिन्दी आएगी, इसकी पदचाप सुनाई दे रही है, बहुत दिनों तक इसकी मौजूदगी को आप नकार नहीं सकते हैं। वह निःशब्द आ रही है, वह हमारे पास है, उसे रोका नहीं जा सकता। वह दिन दूर नहीं जब सम्पूर्ण भारतवासी हिन्दी को पहचान लेंगे, उसे हृदयस्थ करेंगे, उसे गले लगाएँगे, उसे अपना बनाएँगे, उससे अपने जैसा व्यवहार करेंगे।
-विनोद राय